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बिहार की लीची किसानों को नहीं दे पाएगी 'मिठास' !

Source : business.khaskhabar.com | Apr 20, 2020 | businesskhaskhabar.com Commodity News Rss Feeds
 lychee of bihar will not be able to give sweetness to farmers! 438536मुजफ्फरपुर। देश-विदेश में पहचान बना चुकी बिहार के लीची उत्पादक इस साल मायूस हैं। मुजफ्फरपुर जिले सहित उत्तर बिहार के लीची उत्पादकों को इस साल लीची के बेहतर पैदावार होने की संभावना है, लेकिन अब तक बाहर से खरीददार व्यापारियों के नहीं पहुंच पाने के कारण वे मायूस हैं। अच्छी पैदावार होने के बावजूद भी किसानों को नुकसान होने की आशंका है। हालांकि सरकार और लीची अनुसंधान केंद्र किसानों को हरसंभव मदद देने का आश्वासन दे रही है। लीची के किसानों का कहना है कि बंपर पैदावार के बीच भी इस साल नुकसान की संभावना है। इस बीच, हाल के दिनों में हुई बारिश और ओलावृष्टि ने भी उनकी आशंका को और बढ़ा दिया है।

लीची के प्रमुख किसान और बिहार लीची उत्पादक संघ के अध्यक्ष बच्चा प्रसाद सिंह आईएएनएस से कहते हैं कि "लीची खरीदने के लिए अभी तक कोई ठेकेदार या खरीदार इस साल आगे नहीं आए हैं। आमतौर पर वे मार्च के अंतिम सप्ताह में आते हैं या कटाई शुरू होने से पहले अप्रैल के पहले सप्ताह तक यहां पहुंच जाते हैं।''

खरीददार यहां आकर बगीचे में लगे लीची के फलों को देखकर अनुमान के आधार पर ही उनकी खरीद कर लेते है।

सिंह कहते हैं कि सरकारी अधिकारी हमें बाजार की उपलब्धता और लीची के परिवहन का आश्वासन दे रहे हैं, लेकिन इसमें वे कितना सफल हो पाते हैं यह देखने वाली बात होगी।

मुजफ्फरपुर के औराई निवासी लीची किसान दिनेश प्रसाद कहते हैं कि यह क्षेत्र शाही लीची के लिए प्रसिद्ध है, जो अन्य किसी भी प्रजाति के लीची से अधिक मीठी और रसीली होती है। इस वर्ष पेड़ों पर फूल और फल देखकर भरपूर फसल का संकेत मिल रहे हैं।

वे कहते हैं कि पिछले दो साल से लीची के कारण एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम (एईएस) होने की अफवाह के कारण लीची व्यापारियों की संख्या कम हुई थी , लेकिन वैज्ञानिकों द्वारा इसे नकार दिए जाने के बाद बाजार के फिर उठने की संभावना है।

तिरहुत प्रक्षेत्र के कृषि विभाग के संयुक्त निदेषक सुरेंद्र नाथ कहते हैं, ''राज्य में कुल लीची का 70 प्रतिषत उत्पादन इस क्षेत्र में होता है। लीची उत्पादन के लिए मुजफ्फरपुर देश में अव्वल है। बिहार में कुल 32 हजार हेक्टेयर में लीची की खेती होती है। अकेले मुजफ्फरपुर में 11 हजार हेक्टेयर में लीची के बाग हैं। राज्य में पिछले साल 1000 करोड़ रुपये का लीची का व्यवसाय हुआ था। इनमें मुजफ्फरपुर की भागीदारी 400 करोड़ रुपये थी। इस बार 500 करोड़ रुपये से अधिक के कारोबार की उम्मीद है।''

मुजफ्फरपुर के अलावा बिहार में वैशाली, सीतामढ़ी, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, कटिहार और समस्तीपुर में भी लीची के बगीचे हैं।

सुरेंद्र नाथ कहते हैं कि ठेकेदार भूमि मालिकों को अग्रिम भुगतान करने के बाद दो से तीन साल के लिए पट्टे पर जमीन लेते हैं और फिर विभिन्न बाजारों में फल बेचने के बाद शेष भुगतान करते हैं।

इधर, राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. विशालनाथ ने कहा कि यहां लीची की बिक्री दो स्टेज में होती है। पहली स्थिति में व्यापारी किसानों को कुछ पैसा पहले दे देते जबकि दूसरी स्थिति में फल तैयार होने पर किसान बेचते। कई व्यापारी तीन-तीन साल के लिए बाग खरीद लेते।

इस वर्ष भी व्यापारी और किसान एक-दूसरे के संपर्क में हैं। लीची के फल आने में एक पखवारे का वक्त है। निदेशक हालांकि कहते हैं कि केंद्र लीची की मार्केटिंग, पैकिंग और ट्रासंपोर्टेशन की तैयारी कर रहा है। सरकार को पत्र भेजकर लीची की बिक्री से संबंधित संसाधन की व्यवस्था कराने की मांग की गई है। (आईएएनएस)

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