टाटा को नक्सलियों ने नहीं लेने दी जमीन
Source : business.khaskhabar.com | Sep 25, 2016 |
नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल के सिंगुर के बाद इस बार टाटा को छत्तीसगढ के बस्तर से अपनी
वापसी करनी प़डी है। बस्तर में लोहण्डीगुडा इलाके में टाटा ने साढे पांच
मिलियन टन सालाना क्षमता वाले स्टील प्लांट को स्थापित करने की कवायद शुरू
की। इसके लिए 200 करोड रूपए से ज्यादा की रकम खर्च की।
टाटा ने 5500 एकड की
जमीन भी अधिग्रहित की। प्लांट के विस्तार के लिए और जमीन मुहैया नहीं हो
पाई क्योंकि नक्सलियों ने इस प्लांट का विरोध शुरू कर दिया। यहां तक की
नक्सलियों ने टाटा को आयरन ओर (लौह अयस्क)की खदानों में काम तक शुरू नहीं
करने दिया। आखिरकार लंबे इंतजार के बाद टाटा ने छत्तीसगढ को विधिवत रूप से
बाय-बाय कह दिया है।
इस तरह छत्तीसगढ के बस्तर से टाटा स्टील की विदाई हो गई है।
सन 2005 में
टाटा ने लोहंडीगुडा इलाके में साढे पांच टन सालाना क्षमता वाले स्टील
प्लांट की स्थापना के लिए छत्तीसगढ सरकार से बाकायदा एमओयू किया था क्योंकि
बस्तर में भरपूर मात्रा में आयरन ओर की खदानें हैं। लिहाजा राज्य सरकार ने
भी टाटा को आयरन ओर की खदानें भी आवंटित कर दी। इसके साथ ही प्लांट के लिए
भूमि अधिग्रहण की कवायद शुरू हो गई।
इसके बाद जमीन अधिग्रहण
और आयरन ओर की खदानों को लेकर नक्सलियों ने मोर्चा खोल दिया। इसके बाद
प्लांट के विस्तार के लिए ना तो टाटा को जमीन मुहैया हो पाई और ना ही
नक्सलियों ने आयरन ओर खदानों को शुरू नहीं होने दिया। नतीजन टाटा ने इस
प्लांट की स्थापना से अपने हाथ खींच लिए हैं।