बैंकों के फंसे हुए कर्ज मुख्य चुनौती: मूडीज
Source : business.khaskhabar.com | Sep 20, 2016 |
नई दिल्ली। बजट लक्ष्य, निजी निवेश और बैंकों के फंसे हुए कर्जो को भारत की
मुख्य चुनौती बताते हुए मूडीज ने भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में
चालू वित्त वर्ष में 7.7 फीसदी की दर से वृद्धि का अनुमान लगाया है।
इस
बारे में मूडीज सावरिन समूह के वरिष्ठ उपाध्यक्ष मैरी डिरोन ने एक प्रेस
वार्ता में बताया कि भारत की मध्यम अवधि में क्रेडिट रेटिंग सुधारों और
राजकोषीय समेकन पर आधारित है।
मूडीज इन्वेस्टर सर्विस ने कहा,चालू वित्त वर्ष में आगे बजट लक्ष्यों को
पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण खर्च में कटौती हो सकती है। हालांकि चालू
वित्त वर्ष के प्रथम चार महीनों में पूरे साल के बजट लक्ष्य का 74 फीसदी
पूरा कर लिया गया है।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक चिंताजनक...इस प्रेस वार्ता को डिरोन के अलावा मूडीज की भारत में सहयोगी आईसीआरए की
वरिष्ठ अर्थशास्त्री अदिति नायर ने भी संबोधित किया। उन्होंने कहा कि भारत
में वर्तमान वित्त वर्ष के दौरान विकास दर मिलीजुली रहेगी। उन्होंने
कहा,विशेष रूप से, जीवीए (सकल मूल्य संवर्धित) की रफ्तार वित्त वर्ष
2015-16 में 7.2 फीसदी से बढ़कर 7.7 फीसदी होने का अनुमान है। वहीं, सीपीआई
(उपभोक्ता मूल्य सूचकांक) औसतन 4.9 फीसदी से बढकर 5.1 फीसदी रहेगी, जो
चिंताजनक है।
मूडीज के मुताबिक अगर कुछ कदमों को प्रभावी तरीके से लागू किया गया तो भारत
की विकास दर को बढावा मिल सकता है। इन कदमों में उत्पादकता बढ़ाने के लिए
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के नियमों पर प्रतिबंधों में ढील देना, निवेशकों का
मनोबल बढाने के लिए दीवालिया कानून को आसन बनाना और व्यापार में आसानी के
उपाय शामिल होंगे।
कहा गया है कि बारिश से आंशिक फसल सिंचाई, खाद्य भंडारण के क्षेत्र में
धीमी प्रगति और परिवहन अवसंरचानों के निर्माण में धीमी प्रगति के कारण
घरेलू निवेश कम होगा और विदेशी निवेश घरेलू निवेश का विकल्प नहीं बन सकता।
डिरोन ने कहा,मौद्रिक नीति के ढांचे के संदर्भ में भारत सरकार ने मार्च
2021 तक चार फीसदी (दो फीसदी कम-ज्यादा) मुद्रास्फीति का आधिकारिक लक्ष्य
रखा है। इससे मुद्रास्फीति को काबू में रखने में मदद मिलेगी। एजेंसी ने कहा
है कि भारत के बैंकिंग क्षेत्र में जोखिम के कारण उसकी सावरिन रेटिंग पर
असर पडेगा।
बयान में कहा गया,इसके लिए पहले कदम के तौर पर बुरी परिसंपत्तियों को
मान्यता देनी होगी। लेकिन इससे बैंकों को मजबूती नहीं मिलेगी। इसलिए बैंकों
में सरकार के पैसे डालने होंगे। लेकिन सरकार अगर ऎसा करेगी तो उसे
राजकोषीय लक्ष्यों को प्राप्त करने में मुश्किल होगी।
(आईएएनएस)